शायरी में सिमटते कहाँ हैं दिल के दर्द दोस्तों, बहला रहे हैं खुद को, जरा अल्फाज़ो के साथ!
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मॊहब्बत यू ही
मॊहब्बत यू ही किसी से हुआ नहीं करती… अपना वज़ूद भुलाना पड़ता है,किसी को अपना बनाने के लिए…॥
कैसे हो सकता है
कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करे
बस यही तोहफा है
इस मतलबी दुनिया का, बस यही तोहफा है । खूब लुटाया अपनापन फिर भी,जाने क्यों लोग खफा हैं ।
मिल जाए मुझे
मिल जाए मुझे सबकुछ” ये दुआ देकर चला गया.. और मुझे बस वो चाहिए था.. जो ये दुआ देकर चला गया…
अब इतना भी
अब इतना भी सादगी का ज़माना नहीं रहा के तुम वक़्त गुज़ारो और हम प्यार समझें ।।।।।
जिन्होंने याद रखा
जिन्होंने याद रखा उनको सलाम जो भूल गए उनका शुक्रिया
बिछड़ने वाले तेरे
बिछड़ने वाले तेरे लिए, एक “मशवरा” है , . . . कभी हमारा “ख्याल” आए, तो अपना ‘ख्याल’ रखना…..
खेलने की उम्र थी
जिन खिलौनों से खेलने की उम्र थी उसकी…….. मैंने उन खिलौनों को उसे सड़क पर बेचता पाया……!!!!!
कब्र को देख
कब्र को देख के ये रंज होता है दोस्त ,, के इतनी सी जगह के लिए मरना पड़ा ..