तुम्हारी बेरुखी पर भी लुटा दी ज़िन्दगी हमने, अगर तुम मेहरबां होती, हमारा हाल क्या होता….
Category: Shayri-E-Ishq
हजार ख्वाहिशें एक
हजार ख्वाहिशें एक साथ हमने तोलकर देखी उफ्फ़ चाहत उसकी फिर भी सब पे भारी थी
इधर आओ जी भर के
इधर आओ जी भर के हुनर आज़माएँ, तुम तीर आज़माओ, हम ज़िग़र आज़माएँ..
है अजीब शहर की
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है
ए खुदा मौसम को
ए खुदा मौसम को इतना रोमांटिक भी ना कर कुछ लोग ऐसे भी है जिनका मेहबूब नहीं
इन्सान मार दिया जाता है
इन्सान मार दिया जाता है तो कोई कुछ नहीं बोलता जानवर काट दिया तो दंगे भड़का देते है |
सब्र की रोटी को
सब्र की रोटी को हम सब बाँट कर के खाएंगे दिल बड़ा छोटा सा दस्तरख्वान है तो क्या हुआ
ज़ायके सैंकड़ों मौजूद थे
ज़ायके सैंकड़ों मौजूद थे लेकिन हम ने !! हिज्र का रोज़ा तेरी याद से इफ़्तार किया !!
उसने अपने दिल के
उसने अपने दिल के अंदर जब से नफरत पाली है। ऊपर ऊपर रौब झलकता अंदर खाली खाली है।।
मैं थक गया था
मैं थक गया था परवाह करते-करते…..जब से लापरवाह हूँ, आराम सा हैं..