कुछ तुम को भी है

कुछ तुम को भी है अज़ीज़ अपने सभी उसूल, कुछ हम भी इत्तफाक से ज़िद के मरीज़ है।

तबाह करके चैन

तबाह करके चैन उसे भी कहाँ होगा.. बुझाकर हमे वो खुद भी धुआं धुआं होगा..

घर में मिलेंगे

घर में मिलेंगे उतने ही छोटे कदों के लोग, दरवाजे जिस मकान के जितने बुलंद है।

इश्क़ के सारे फ़साने

इश्क़ के सारे फ़साने अधूरे ही क्यूँ हैं! जो मजबूर हुए वही मशहूर क्यूँ हैं!

प्यार करने के लिए

प्यार करने के लिए, गीत सुनाने के लिए .. इक ख़ज़ाना है मेरे पास लुटाने के लिए ..

जंग हारी न थी

जंग हारी न थी अभी कि फ़राज़ कर गए दोस्त दरमियाँ से दूर रहना |

आँखों की दहलीज़ पे

आँखों की दहलीज़ पे आके सपना बोला आंसू से… घर तो आखिर घर होता है… तुम रह लो या मैं रह लूँ….

हारने वालो का

हारने वालो का भी अपना रुतबा होता हैं … मलाल वो करे जो दौड़ में शामिल नही थे. …

मुझे मशहुर कर दिया

अहसान रहा इलज़ाम लगाने वालो का मुझ पर उठती ऊँगलियो ने जहाँ मे मुझे मशहुर कर दिया |

राख बेशक हूँ

राख बेशक हूँ मगर मुझ में हरकत है अभी भी.. जिसको जलने की तमन्ना हो..हवा दे मुझको…

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