लिखने को लिख रहे हैं

लिखने को लिख रहे हैं हम ग़ज़ब की शायरीयाँ पर लिखी न जा सकी कभी अपनी ही दास्ताँ………

रोज़ करता हूँ

रोज़ करता हूँ इरादा ऐ मेरे मौला तुझको भूल जाने का, रोज़ थोड़ा-थोड़ा खुद को भूलने लगा हूँ अब।

शाख से फूल तोड़कर

शाख से फूल तोड़कर मैंने ,सीखा अच्छा होना गुनाह है ,इस जहाँ में |

न जाने कैसी नज़र लगी है

न जाने कैसी नज़र लगी है ज़माने की, अब वजह नहीं मिलती मुस्कुराने की !

इसे इत्तेफाक समझो

इसे इत्तेफाक समझो या दर्दनाक हकीकत, आँख जब भी नम हुई, वजह कोई अपना ही निकला !!

सपने भी डरने लगे है

सपने भी डरने लगे है तेरी बेवफाई से, कहते है वो आते तो है मगर किसी और के साथ !!

आज तो हम

आज तो हम खूब रुलायेंगे उन्हें, सुना है उसे रोते हुए लिपट जाने की आदत है!

वक़्त की शाख़ से

वक़्त की शाख़ से कुछ लम्हें तोड़ लो ख़ुद को वर्ना पछताने के सिवा और न कुछ हासिल होगा

कंही पर बिखरी हुई बातें

कंही पर बिखरी हुई बातें कंही पर टूटे हुए वादे, ज़िन्दगी बता क्या तेरी रज़ा है और क्या तेरे इरादे…

छा जाती है

छा जाती है खामोशी अगर गुनाह अपने हों..!! बात दूसरे की हो तो शोर बहुत होता है….!!

Exit mobile version