बैठ जाता हूँ

बैठ जाता हूँ अब खुले आसमान के नीचे तारो की छाँव मे,,, अब शौक नही रहा महफिलो मे रंग जमाने का…

वो इश्क ही क्या

वो इश्क ही क्या, जो सलामत छोड़ दे…

इतना काफी है

इतना काफी है के तुझे जी रहे हैं,,,, ज़िन्दगी इससे ज़्यादा मेरे मुंह न लगाकर…!!

नब्ज़ में नुकसान

नब्ज़ में नुकसान बह रहा है लगता है दिल में इश्क़ पल रहा है…!!

इस सलीक़े से

इस सलीक़े से मुझे क़त्ल किया है उसने, अब भी दुनिया ये समझती है की ज़िंदा हूँ मैं….!!

अपने दिल से

अपने दिल से मिटा ड़ाली तेरे साथ की सारी तस्वीरें आने लगी जो ख़ुशबू तेरे ज़िस्मों-जां से किसी और की…!!

सुकून मिला है

सुकून मिला है मुझे आज बदनाम होकर… तेरे हर एक इल्ज़ाम पे यूँ बेज़ुबान होकर….

मेरी मुहब्बत अक्सर

मेरी मुहब्बत अक्सर ये सवाल करती है… जिनके दिल ही नहीं उनसे ही दिल लगाते क्यूँ हो…

ताश के पत्तों में

ताश के पत्तों में दरबदर बदलते चले गए… इश्क़ में सिमटे तो ऐसे के बिखरते चले गए… यूँ तो दिल ने बसायी थी एक दुनिया उनके संग… रहने को जब भी निकले उजड़ते चले गए…

इस मुक़द्दर की

इस मुक़द्दर की सिर्फ़ मुझसे ही अदावत क्यूँ हैं… गर मुहब्बत है तो मुझे तुझसे ही मुहब्बत क्यूँ है…

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