नज़र को नज़र की

नज़र को नज़र की खबर ना लगे, कोई अच्छा भी इस कदर ना लगे, आपको देखा है बस उस नज़र से, जिस नज़र से आपको नज़र ना लगे..!!

सीने पे तीर खा कर

सीने पे तीर खा कर भी अगर कोई मुस्कुरा दे तो…… निशाना लाख अच्छा हो मगर बेकार जाता है.

रिवाज़ तो यही हैं

रिवाज़ तो यही हैं दुनिया का, मिल जाना बिछड़ जाना, तुमसे ये कैसा रिश्ता हैं, ना मिलते हों, ना बिछड़ते हों !

कोई सुलह करा दे

कोई सुलह करा दे जिदंगी की उलझनों से…बड़ी तलब लगी है आज मुस्कुराने की …!!

पता नहीं क्या रिश्ता था

पता नहीं क्या रिश्ता था टहनी से उस पंछी का.. उसके उड़ जाने पर वो बड़ी देर तक काँपती रही..!

अजीब सी बस्ती में

अजीब सी बस्ती में ठिकाना है मेरा जिसे वो ‘शहर’ कहते हैं… जहाँ लोग मिलते कम, झाँकते ज्यादा हैं….

बादलों से मिलता हुआ

बादलों से मिलता हुआ मिजाज़ था मेरे प्यार का, कभी टूट के बरस गया कभी बेरुखी से गुज़र गया।।

लिख लिख के मेरा नाम

लिख लिख के मेरा नाम जमीं पर मिटा दिया, उनका था खेल खाक में हमें मिला दिया|

तुम मुहब्बत को

तुम मुहब्बत को खेल कहते हो हमने बरबाद ज़िंदगी कर ली|

मोहब्बत आम सा

मोहब्बत आम सा इक वाक़िआ था, हमारे साथ पेश आने से पहले !!

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