ग़ुलाम हूँ अपने घर की

ग़ुलाम हूँ अपने घर की तहज़ीब का वरना लोगों को औकात दिखाने का हूनर भी रखता हूँ|

मैने अपने साये को

मैने अपने साये को भी मार डाला है मेरी तन्हाई अब मुक्कमल है।

राख बेशक हूँ

राख बेशक हूँ पर मुझमे हरकत है अभी भी, जिसको जलने की तमन्ना हो हवा दे मुझको..

उड़ने दो मिट्टी

उड़ने दो मिट्टी,कहाँ तक उड़ेगी, हवा का साथ छूटेगा, ज़मीं पर आ गिरेगी…!

मुझे किसी ग़ज़ल सा

मुझे किसी ग़ज़ल सा लगता है ये नाम तुम्हारा देखो तुम्हे याद करते करते मैं शायर बन गयी|

अर्थ लापता हैं

अर्थ लापता हैं या फिर शायद लफ्ज खो गए हैं…! रह जाती है मेरी हर बात क्यूँ इरशाद होते होते….!!

सजदा कहूँ या कहूँ

सजदा कहूँ या कहूँ इसे मोहब्बत तेरे नाम में आये अक्षर भी हम मुस्कुरा कर लिखा करते हैं

किसी रोज़ शाम के

किसी रोज़ शाम के वक़्त… सूरज के आराम के वक़्त… मिल जाये साथ तेरा… हाथ में लेके हाथ तेरा…

काश तुम भी

काश तुम भी हो जाओ तुम्हारी यादों की तरह, ना वक़्त देखो, ना बहाना, बस चले आओ…

मरकर भी तुझको

मरकर भी तुझको देखते रहने के शौक में, आखें भी हम किसी को अमानत में दे जायेंगे….

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