याद है मुझे रात थी

याद है मुझे रात थी उस वक़्त जब शहर तुम्हारा गुजरा था फिर भी मैने ट्रेन की खिडकी खोली थी… काश मुद्दतो बाद तुम दिख जाओ कहीं….

आदमी को परखने की

आदमी को परखने की इक ये भी निशानी है… गुफ़्तगू ही बता देती है कौन ख़ानदानी है

कौन कहता है आसमां में

कौन कहता है आसमां में सुराख़ हो नहीं सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों!

तुझे जमाने का डर है

तुझे जमाने का डर है, मुझसे बात न कर, दिल में कोई और है, तो मुझसे बात न कर ….

मैं तुझे चाहकर भी

मैं तुझे चाहकर भी अपना न बना सका, जब मरना चाहा तो तेरी यादों ने मरने भी न दिया |

जन्नत मैं सब कुछ हैं

जन्नत मैं सब कुछ हैं मगर मौत नहीं हैं .. धार्मिक किताबों मैं सब कुछ हैं मगर झूट नहीं हैं दुनिया मैं सब कुछ हैं लेकिन सुकून नहीं हैं इंसान मैं सब कुछ हैं मगर सब्र नहीं हैं|

पत्थर की दुनिया जज़्बात नही

पत्थर की दुनिया जज़्बात नही समझती,दिल में क्या है वो बात नही समझती,तन्हा तो चाँद भी सितारों के बीच में है,पर चाँद का दर्द वो रात नही समझती

उस दिल की बस्ती में

उस दिल की बस्ती में आज अजीब सा सन्नाटा है, जिस में कभी तेरी हर बात पर  महफिल सजा करती थी।

इस शहर में

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं|

हँसी यूँ ही नहीं आई है

हँसी यूँ ही नहीं आई है इस ख़ामोश चेहरे पर…..कई ज़ख्मों को सीने में दबाकर रख दिया हमने

Exit mobile version