हर रोज के मिलने से

हर रोज के मिलने से तक़ल्लुफ़ कैसा ?? चाँद सौ बार भी निकले तो नया लगता है !!

छू जाते हो तुम

छू जाते हो तुम मुझे हर रोज एक नया ख्वाब बनकर.. ये दुनिया तो खामखां कहती है कि तुम मेरे करीब नहीं..

मेरे हाथ की वो लकीर

तुम मेरे हाथ की वो लकीर हो जो मेरे नसीब में नही |

क्यों ना खुशी से

क्यों ना खुशी से जीने के बहाने ढूँढले गम तो किसी भी बहाने मिल ही जाते है…

अगर होता जोर तुम पर

अगर होता जोर तुम पर तो दुनिया से तुम्हे चुरा लेते, दिल के मकान में ताला लगाकर चाबी पानी में बहा देते |

खींच लेती है मुझे

खींच लेती है मुझे उसकी मोहब्बत; वरना मै बहुत बार मिला हूँ आखरी बार उससे|

ज़िंदगी क्यों वैसी है

ज़िंदगी क्यों ऐसी नहीं जैसी होनी चाहिए !!! ज़िंदगी क्यों वैसी है जैसी नहीं होनी चाहिए !!!

तुम कौन हो

बेवफाई का आलम तो देखिए. मेरे पास आके पूछते है तुम कौन हो….!!!

तेरी जगह आज भी

तेरी जगह आज भी कोई नहीं ले सकता..खुबी तुझ में नहीं कमी मुझ में है..

इतिहास के वारसदार हैं

कहानीयो के हकदार नही, इतिहास के वारसदार हैं हम !!

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