ग़ज़ल में इश्क़ की बूंदे

ग़ज़ल में इश्क़ की बूंदे ? दूर रखो तेज़ाब सी लगती है ।

काश़ पढ़ लेता कोई

काश़ पढ़ लेता कोई मुझ अधूरे को आधी लिखावट में दर्द पूरे को…!

मैं अपने शब्दों की

मैं अपने शब्दों की बारात लाऊंगा,तुम अपनी ग़ज़ल को घूंघट में रखना|

जंग हारी न थी

जंग हारी न थी अभी कि फ़राज़ कर गए दोस्त दरमियाँ से दूर रहना |

राख बेशक हूँ

राख बेशक हूँ मगर मुझ में हरकत है अभी भी.. जिसको जलने की तमन्ना हो..हवा दे मुझको…

चाहिए क्या तुम्हे तोहफे में

चाहिए क्या तुम्हे तोहफे में बता दो वरना हम तो बाजार के बाजार उठा लाएंगे|

वैसे तो बहुत है मेरे पास

वैसे तो बहुत है मेरे पास, कहानियों के किस्से… पर खत्म हुए किस्सों में, खामोशियाँ ही बेहतर…

याद करा दी गई थीं

दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में, सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम।

गुम अगर सूई भी

गुम अगर सूई भी हो जाए तो दिल दुखता है और हमने तो मुहब्बत में तुझे खोया था…

उसकी गली का

उसकी गली का सफर आज भी याद है मुझे… मैं कोई वैज्ञानिक नहीं था पर मेरी खोज लाजवाब थी…

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