उस तीर से

उस तीर से क्या शिकवा, जो सीने में चुभ गया, लोग इधर हंसते हंसते, नज़रों से वार करते हैं।

एक शब्द है

एक शब्द है दुःख, कहो कई – कई तरह से फेर। दुःख ही दुःख है ज़िंदगी सुख की यहाँ नहीं ख़ैर।।

तुम नफरतों के धरने

तुम नफरतों के धरने,क़यामत तक ज़ारी रखो। मैं मोहब्बत से इस्तीफ़ा,मरते दम तक नहीं दूंगा।

तुझे ही फुरसत ना थी

तुझे ही फुरसत ना थी किसी अफ़साने को पढ़ने की, मैं तो बिकता रहा तेरे शहर में किताबों की तरह..

मंजिल पर पहुंचकर

मंजिल पर पहुंचकर लिखूंगा मैं इन रास्तों की मुश्किलों का जिक्र, अभी तो बस आगे बढ़ने से ही फुरसत नही..

तलाशी लेकर मेरे

तलाशी लेकर मेरे हाथों की क्या पा लोगे तुम बोलो, बस चंद लकीरों में छिपे अधूरे से कुछ किस्से हैं..

बता किस कोने में

बता किस कोने में, सुखाऊँ तेरी यादें, बरसात बाहर भी है, और भीतर भी है..

तू भी तो आइने की तरह

तू भी तो आइने की तरह बेवफा निकला, जो सामने आया उसी का हो गया..

उफ़ ये गजब की रात

उफ़ ये गजब की रात और ये ठंडी हवा का आलम, हम भी खूब सोते अगर उनकी बांहो में होते|

मोहब्बत के रास्ते

मोहब्बत के रास्ते कितने भी मखमली क्युँ न हो… खत्म तन्हाई के खंडहरों में ही होते है…!!

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