उनका इल्ज़ाम लगाने का

उनका इल्ज़ाम लगाने का अन्दाज़ गज़ब था… हमने खुद अपने ही ख़िलाफ,गवाही दे दी..

मिल सके आसानी से

मिल सके आसानी से , उसकी ख्वाहिश किसे है? ज़िद तो उसकी है … जो मुकद्दर में लिखा ही नहीं!!!!!

तुझ से दूर रहकर

तुझ से दूर रहकर मोहब्बत बढती जा रही है,क्या कहूँ, केसे कहूँ, ये दुरी तुझे और करीब ला रही है..

सुना था मोहब्बत मिलती है

सुना था मोहब्बत मिलती है मोहब्बत के बदले, हमारी बारी आई तो, रिवाज ही बदल गया|

आए थे मीर ख़्वाब में

आए थे मीर ख़्वाब में कल डांट कर गए, क्या शायरी के नाम पर कुछ भी नहीं रहा….

उसे भी दर्द है

उसे भी दर्द है शायद बिछड़ने का, गिलाफ वो भी बदलती है रोज तकिए का…!

कभी ये लगता है

कभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ कभी ये लगता है अब तक तो कुछ हुआ भी नहीं

जब तक बिके न थे

जब तक बिके न थे हम, कोई हमें पूछता न था, तूने खरीद के हमें, अनमोल कर दिया |

मेरी वफ़ा का

मेरी वफ़ा का कभी इम्तिहान मत लेना की मेरे दिल को तेरे लिए हारने की आदत है…..

मुझे कुछ नहीं कहना….

मुझे कुछ नहीं कहना……..बस इतनी गुज़ारिश है.. मुझे तुम उतने ही मिल जाओ जितने याद आते हो…

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