अजीब था उनका अलविदा कहना

अजीब था उनका अलविदा कहना, सुना कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं, बर्बाद हुवे उनकी मोहब्बत में, की लुटा कुछ नहीं और बचा भी कुछ नही

शायरी क्या है मुझे पता नहीं …

शायरी क्या है मुझे पता नहीं, मै नग्मों की बंदिश जानता नहीं, मै जो भी लिखता हूँ, मान लेना सब बकवास है, जो कुछ भी हैं ये कैद इन अल्फाजों में, बस ये मेरे कुछ दर्द और मेरे कुछ ज़ज्बात हैं.

तेरी जगह आज भी

तेरी जगह आज भी कोई नही ले सकता खूबी तूजमे नही कमी मुझमें है

फूलों की तरह

हम तो फूलों की तरह अपनी आदत से बेबस हैं। तोडने वाले को भी खुशबू की सजा देते हैं।

तनहाई से नही

तनहाई से नही …. शिकायत तो मुझे उस भीड से हैं … जो तेरी यादो को मिटाने कि कोशिश में होती हैं …..

तेरी जगह आज भी

तेरी जगह आज भी कोई नही ले सकता खूबी तूजमे नही कमी मुझमें है

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