ठान लिया था

ठान लिया था कि अब और शायरी नही लिखेंगे पर उनका पल्लू गिरा देखा और अल्फ़ाज़ बग़ावत कर बैठे..!!

सामने आये मेरे

सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी की मुस्कराए भी,पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर कल का अख़बार था,बस देख लिया,रख भी दिया।

टूट ही न जाए

कलम रूठ के टूट ही न जाए, आज मुझसे………..!! अपनी बेबसी का जोर, इस्पे निकल रहा हूँ मैं…….!!

पागलपन की हद

पागलपन की हद से न गुजरे तो प्यार कैसा. .? होश मे तो रिश्ते निभाए जाते है|

एक जीत है तू

एक जीत है तू… एक हार हूँ मैं बिना तेरे किसी कहानी का अधूरा किरदार हूँ मैं ।

घर-बार बांटने की बातें

घर-बार बांटने की बातें सुन , कितना लड़खड़ाया वो इंसान । अखबार तक जो पुराने संभाल कर रखता है ।

मेरा कोई अपना नहीं है

यहाँ मेरा कोई अपना नहीं है.. चलो अच्छा है कुछ ख़तरा नहीं है !!

जेब में कई बार

जेब में कई बार हाध डाला कुछ न था शायद किसी मजबूर की आहों का धुवाँ था|

बड़ी जल्दी ख्याल आया

वाह मेरे महबूब बड़ी जल्दी ख्याल आया मेरा.. बस भी करो चूमना.. अब उठने भी दो जनाज़ा मेरा..

अमीरी जब तक

अमीरी जब तक अपने शौक़ पूरे कर सोती है । मुफ़लिसी जाग जाती है एक और दिन के लिए ।।

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