जला रहा हूँ खुद अपने लहू से दिल के चराग़, ना जाने कितनी मुहब्बत है रोशनी से मुझे…
Category: व्यंग्य शायरी
जीत नहीं सकते
जीवन में हर जगह हम जीत चाहते हैं सिर्फ फूलवाले की दूकान ऐसी है, जहाँ हम कहते हैं कि हार चाहिए क्यों कि हम भगवान से जीत नहीं सकते.
रुलाने मेँ अक्सर
रुलाने मेँ अक्सर उन्हीँ का हाथ होता है जो …कहते… हैँ तुम हँसते हुए अच्छे लगते हो_____!!
तेरे काफ़िले मेँ
मुझे तेरे काफ़िले मेँ चलने का कोई शौक नहीँ. मगर तेरे साथ कोई और चले मुझे अच्छा नहीँ लगता
खाने पे टूट पड़े
खाने पे टूट पड़े सब , क्या ख़ास – क्या आम …. चालीसवा था जिसका,वो भुखमरी से मर गया …
उधार सा है…
कोई तो सूद चुकाये, कोई तो जिम्मा ले… उस इंकलाब का जो आज तक उधार सा है…
उनसे इश्क़ हुआ है..
सिर्फ रिश्ते टूटा करते हैं साहब, मुझे तो उनसे इश्क़ हुआ है..
लहू बेच-बेच कर
लहू बेच-बेच कर जिसने परिवार को पाला, वो भूखा सो गया जब बच्चे कमाने वाले हो गए…!!
मोहब्बत बढ़ती जायेगी।
हमने कब माँगा है तुमसे वफाओं का सिलसिला; बस दर्द देते रहा करो, मोहब्बत बढ़ती जायेगी।
लोग मुन्तजिर थे
लोग मुन्तजिर थे, मुझे टूटता हुआ देखने के, और एक मैं था, कि ठोकरें खा खा कर पत्थर का हो गया