कच्ची-सी सरहद

मैं रहता इस तरफ़ हूँ यार की दीवार के लेकिन मेरा साया अभी दीवार के उस पार गिरता है बड़ी कच्ची-सी सरहद एक अपने जिस्मों-जां की हैं

करो यकीं तो बताऊँ

करो यकीं तो बताऊँ तुम्हे — बहुत ख़ास, बहुत खास, बहुत खास हो तुम —-!

भरे बाजार से अक्सर

भरे बाजार से अक्सर खाली हाथ ही लौट आता हुँ …… पहले पैसे नही थे, अब ख्वाहिशें नही रही…।।

मत पुछ वज़ह

मत पुछ वज़ह तु पसंद हैं बेवज़ह

क़ायनात की सबसे

क़ायनात की सबसे महंगी चीज एहसास है जो दुनिया के हर इंसान के पास नहीं होता

मंज़िलों से गुमराह

मंज़िलों से गुमराह भी ,कर देते हैं कुछ लोग ।। हर किसी से ,रास्ता पूछना अच्छा नहीं होता ।

समेट कर ले जाओ

समेट कर ले जाओ अपने झूठे वादों के अधूरे क़िस्से अगली मोहब्बत में तुम्हें फिर इनकी ज़रूरत पड़ेगी।

एक उम्र गुजरती है

एक उम्र गुजरती है धुलने में दागे दामन लगती है देर कितनी इल्जाम लगाने में।

नेता नहीं होते

कभी मंदिर पे बैठते हैं कभी मस्जिद पे …!! ये मुमकिन है इसलिए क्योंकि परिंदों में नेता नहीं होते

वक़्त की गर्दिश

न रुकी वक़्त की गर्दिश और न ज़माना बदला, पेड़ सूखा तो परिन्दों ने ठिकाना बदला…

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