जिसकी बातों में दम नहीं होता

चीखता है वही सदा जिसकी बातों में दम नहीं होता

क़त्ल अब खेल बन गया

क़त्ल अब खेल बन गया क्यूँ की सर सज़ा में कलम नहीं होता

ग़म नहीं होता

ज़िन्दगी में जो ग़म नहीं होता नाम रब का अहम् नहीं होता

चौंच से नोचा है

परों को चौंच से नोचा है अक्सर क़फ़स के नाम कुर्बानी बहुत है

सहारा भी बहोत

सहारा भी बहोत गजब का दिया उसने खुद सो गई मेरी कब्र पे सर रखकर

रास्ते कहाँ ख़त्म होते हैं

रास्ते कहाँ ख़त्म होते हैं ज़िन्दगी के सफ़र में,मंज़िल तो वहीँ है जहां ख्वाहिशे थम जाए !

इंतजार की घङिया

इक मैँ जो, इंतजार की घङिया ;गिनता रहा……!! . इक तुम जो, आँखे चुराकर निकल गए……!!

तेरी यादें

तेरी यादें…..कांच के टुकड़े… और मेरा दिल ….नंगे पाँव..!!

दो लफ़्ज़ों की

ये दो लफ़्ज़ों की तेरी-मेरी कहानी तू “मक्का” की धूल मैं “काशी” का पानी….

किस चीज़ पर

एक फ़क़ीर दो चिता की राख को बड़े ध्यान से देखते हुये किसी ने पूछा कि बाबा ऐसे क्यू देख रहे हो राख को ??? फ़क़ीर बोला कि ये एक सेठ की लाश की राख है जिसने ज़िंदगी भर काजू बादाम स्वर्ण भस्म खाये और ये एक ग़रीब की लाश है जिसे दो वक़्त की… Continue reading किस चीज़ पर

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