तुम ग़ज़ल हो

ग़ालिब, मीर, फ़राज़ जो कह गए कभी उन हर्फों से तराशी हुई, तुम ग़ज़ल हो ।।

मुँह दिखायी में

तुम आओ न दुल्हन बन कर मुँह दिखायी में जान दे दूंगा

सुना है काफी

सुना है काफी पढ़ लिख गए हो तुम, कभी वो बी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते !!

सामान बाँध लिया

सामान बाँध लिया है मैंने अब बता ओ गालिब… कहाँ रहते हैं वो लोग जो कहीं के नहीं रहते…

क्या करा देती हैं

यादें भी क्या क्या करा देती हैं….. कोई शायर हो गया……, कोई खामोश !!!

कितनी ही अनकही

ना जाने कितनी ही अनकही बातें साथ ले गया..! लोग झूठ कहते रहे कि… खाली हाथ गया है।।

ज़िन्दगी की दुआयें

शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे न दो मैं कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे न दो जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो ऐसा कहीं न हो के पलटकर न आ सकूँ हर बार दूर जा के सदायें मुझे न दो कब… Continue reading ज़िन्दगी की दुआयें

हमारी परवाह करते हैं

हम उन्हे रूलाते हैं, जो हमारी परवाह करते हैं…(माता पिता) हम उनके लिए रोते हैं, जो हमारी परवाह नहीं करते…(औलाद ) और, हम उनकी परवाह करते हैं, जो हमारे लिए कभी नहीं रोयेगें !…(समाज)

मुझे पढने वाला

मुझे पढने वाला पढ़े भी क्या मुझे लिखने वाला लिखे भी क्या जहाँ नाम मेरा लिखा गया वहां रोशनाई उलट गई

अपने ने मारा था..!!

पत्थर तो बहुत मारे थे लोगों ने मुझे …! लेकिन जो दिल पर आ के लगा वो किसी अपने ने मारा था..!!

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