चलो अच्छा हुआ कि धुंध पड़ने लगी…. दूर तक तकती थीं निगाहें उनको…
Category: वक्त-शायरी
सिर गिरे सजदे में
सिर गिरे सजदे में, दिल में दग़ा-बाज़ी हो.. ऐसे सजदों से भला, कैसे खुदा राज़ी हो!!!
बेशक तुम्हारे बिना
बेशक तुम्हारे बिना जिंदगी काट सकते हैं, लेकिन “जिंदगी जी नहीँ सकते !
सुकून देने के लिए बनते हैं..
कुछ रिश्ते सुकून देने के लिए बनते हैं.. कलम से भी हमारा कुछ ऐसा हीं रिश्ता है!!
जिसको चाहा हमने
जिसको चाहा हमने वो माना ख़ास था हमने इबादत क्या करी वो तो खुदा बन बैठा|
घर न जाऊं किसी के
घर न जाऊं किसी के तो रूठ जातें हैं बड़े बुजुर्ग गावों में….. गांव की मिटटी में अब भी वो तहज़ीब बाकी है.
पता है जिसको
पता है जिसको मुस्तकबिल हमारा वो अपने आज से अनजान क्यूँ है|
धुप में रहने वाले
धुप में रहने वाले जल्दी निखर जाते है, छाया में रहने वाले जल्दी बिखर जाते है !!
क्या लाजवाब था
क्या लाजवाब था तेरा छोड़ के जाना, भरी भरी आँखों से मुस्कुराये थे हम|
टूटे हुए घर
टूटे हुए घर भी ज़रा देख ले चल के… तन्हाई में नक़्शे न बना ताज महल के…