उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यक़ीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा
Category: मौसम शायरी
चल आ तेरे पैरो पर
चल आ तेरे पैरो पर मरहम लगा दूं ऐ मुक़द्दर. कुछ चोटे तुझे भी तो आई ही होगी, मेरे सपनो को ठोकर मारते मारते !
ज़िँदगी का खेल अकेले नहीँ
ज़िँदगी का खेल अकेले नहीँ खेला जाता.. हमारी तो टीम है आ जाओ या बुला लो . . .
वैसे ही दिन वैसी ही रातें
वैसे ही दिन वैसी ही रातें ग़ालिब, वही रोज का फ़साना लगता है महीना भी नहीं गुजरा और यह साल अभी से पुराना लगता है……
हमको अब उनका…
हमको अब उनका…. वास्ता ना दीजिए …. हमारा अब उनसे…. वास्ता नहीं…
अब कोई नक्शा नही
अब कोई नक्शा नही उतरेगा इस दिल की दीवार पर….!! तेरी तस्वीर बनाकर कलम तोड़ दी मैंने…
आज फिर मुमकिन नही
आज फिर मुमकिन नही कि मैं सो जाऊँ… यादें फिर बहुत आ रही हैं नींदें उड़ाने वाली
उम्मीद न कर इस दुनिया मेँ
उम्मीद न कर इस दुनिया मेँ, किसी से हमदर्दी की..!! बड़े प्यार से जख्म देते हैँ, शिद्दत से चाहने वाले…!!
अब डर लगता है
अब डर लगता है मुझे उन लोगो से… जो कहते है, मेरा यक़ीन तो करो…!!
न दोज़ख़ से
न दोज़ख़ से,न ख़ून की लाली से डर लगता है, कौन हैं ये लोग,इनको क़व्वाली से डर लगता है।