लफ्ज़ लफ्ज़ उसकी यादो का मेरे ज़हन में दर्ज है उसका इश्क़ ही इलाज है उसका इश्क़ ही मेरा मर्ज़ है|
Category: गुस्ताखियां शायरी
तुम कब भूल जाओ
क्या पता तुम कब भूल जाओ ये मोहब्बत… जिसे हम ज़िन्दगी और तुम एक लफ्ज़ कहते हो…
जैसा याद और हिचकी
जैसा याद और हिचकी मे है वैसा ही कुछ ताल्लुक है तमाम कोशिशें नाकाम रहीं इस रिश्ते पर लफ्ज का रंग ना चढ़ा|
लिख लिख कर
लिख लिख कर छोड़ देते हैं शायरियां जिसके लिए बस, उन्ही को फ़ुरसत नहीं पढ़ने की !!
किसी और को चाहना
उसके सिवा किसी और को चाहना मेरे बस में नहीं हे , ये दिल उसका हे , अपना होता तो बात और होती ।
यादों की कीमत
यादों की कीमत वो क्या जानें, जो खुद यादों को मिटा दिया करते हैं. यादों की कीमत उनसे पूछिए, जो यादों के सहारे जिया करते हैं.
मैं उस किताब का
मैं उस किताब का आख़िरी पन्ना था मैं ना होता तो कहानी ख़त्म न होती
मुक्कमल हो गई
मुक्कमल हो गई आखिर आज जिंदगी की गजल मेरी उसने भी पढ़ कर वाह वाह कह दिया|
इबादत की खुशबुएँ
उठती है इबादत की खुशबुएँ क्यूँ मेरे इश्क से जैसे ही मेरे होंठ ये छू लेते है तेरे नाम को |
बस एक शाम की
बस एक शाम की लज़्ज़त बहुत ग़नीमत जान अज़ीम पाक़ मुहब्बत हरेक के बस की नहीं|