जीने का सलिका

जीने का सलिका सिखा दिया तूने . . . अब आंसू भी निकलते है तो मुस्कान के साथ

रोड किनारे चाय

रोड किनारे चाय वाले ने हाथ में गिलास थमाते हुए पूछा…… “चाय के साथ क्या लोगे साहब”? ज़ुबाँ पे लव्ज़ आते आते रह गए “पुराने यार मिलेंगे क्या”?

अक्सर चाकू-छुरी वही खोलते है

अक्सर चाकू-छुरी वही खोलते है जो कमज़ोर होते है, वरना हम जैसों का तो सारा काम मान-सम्मान से ही हो जाता है।।

बरसो से कायम है

बरसो से कायम है इश्क अपने उसुलो पे, ये कल भी तकलीफ देता था ये आज भी तकलीफ देता है!!!

तू ज़ाहिर है

तू ज़ाहिर है लफ्जों में मेरे… मैं गुमनाम हूँ खामोंशियों मे तेरी…

आज सुबह सुबह

आज सुबह सुबह मौत बड़े गुस्से में आके मुझसे बोली की “मैं तेरी जान ले लूँगी” मैंने भी कह दिया की जिस्म लेना है तो ले ले जान तो कोई और ले गया है ll

अब मत करो

अब मत करो हमसे…तुम मोहब्बत की बातें, जिन किताबों से तुमने मोहब्बत सीखी है,वो लिखी भी हमने ही थी

आज हम हैं

आज हम हैं कल हमारी यादें होंगी, जब हम ना होंगे तब हमारी बातें होंगी, कभी पलटोगे जिंदगी के ये पन्ने, तब शायद आपकी आंखों से भी बरसातें होंगी

हद से ज्यादा

हद से ज्यादा बढ चुका है तेरा नजरअंदाज करना; ऐसा सलूक ना करो कि हम भूलने पर मजबूर हो जाये…

मैं सदा बेतरतीब

मैं सदा बेतरतीब और बेहिसाब ही रहता हूँ, उलझी-उलझी सी जिंदगी मुझे पसंद है शायद…

Exit mobile version