न “माँग” कुछ

न “माँग” कुछ “जमाने” से ” ये” देकर “फिर” “सुनाते” हैं “किया” “एहसान” “जो” एक “बार” वो “लाख” बार “जताते” “हैं” “है” “जिनके” पास “कुछ” “दौलत” ” समझते” हैं “खुदा” हैं “हम” “ऐ” “बन्दे” तू “माँग” “अपने””अल्लाह” से “जहाँ” माँगने “वो” भी “जाते” है..

सीधा सा परिचय है

मेरे जीवन का बहुत सीधा सा परिचय है आँसू वास्तविक और मुस्कान काल्पनिक है….

जो लोग दूसरों की

जो लोग दूसरों की आँखों में आंसू भरते हैं वो क्यों भूल जाते है कि उनके पास भी दो आँखें है

मैं वो दरिया हूं

मैं वो दरिया हूं जिसकी हर बूंद भंवर है तुमने अच्छा ही किया किनारा करके

मुझे ही नहीं

मुझे ही नहीं रहा शौक़ -ए मोहब्बत वरना, तेरे शहर की खिड़कियाँ इशारे अब भी करती हैं…

में तो उसको देखकर

में तो उसको देखकर एक नज़र में ही फ़ना हो गया, न जाने रोज उसके आयने का क्या हाल होता होगा।।

खुदगर्जी होती है

किसी को पाने के लिए अपनों को छोड़ना खुदगर्जी होती है मोहब्बत नहीं….

ग़रीबी देख कर

ग़रीबी देख कर घर की , वो बच्चे ज़िद नही करते वरना उम्र बच्चो की बड़ी शौकीन होती है

अजब तमाशे है

अजब तमाशे है दुनिया में यारों, कौडिया में इज्जत और करोड़ों में कपड़े बिकते हैं.

उनकी भी अदाएं

उनकी भी अदाएं बेमिसाल है मुसाफिर बोलते है तो सवाल करते है और चुप रहे तो वजह पूछ लेते है ।

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