बड़े सुकून से वो रहता है आज कल मेरे बिना, जैसे किसी उलझन से छुटकारा मिल गया हो उसे…
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कोई ऐसी सुबह भी
कोई ऐसी सुबह भी मिले मुझे, के मेरी आँख खुले तेरी आवाज से..
जो तालाबों पर
जो तालाबों पर चौकीदारी करते हैँ… वो समन्दरों पर राज नहीं कर सकते..!!!
बस यही सोच कर
बस यही सोच कर हर मुश्किलों से लड़ता आया हूँ…धूप कितनी भी तेज़ हो समन्दर नहीं सूखा करते…
एक मुद्दत से
एक मुद्दत से तुम निगाहों में समाए हो…! एक मुद्दत से हम होंश में नहीं हैं ..!!
मुड़कर नहीं देखता
मुड़कर नहीं देखता अलविदा के बाद , कई मुलाकातें बस इसी गुरुर ने खो दी।
लगने दो आज महफिल …
लगने दो आज महफिल …. शायरी कि जुँबा में बहते है .. तुम ऊठा लो किताब गालिब कि …. हम अपना हाल ए दिल कहते है
शिकायत तुम्हे वक्त से
शिकायत तुम्हे वक्त से नहीं खुद से होगी, कि मुहब्बत सामने थी, और तुम दुनिया में उलझी रही….
रात होते ही
रात होते ही, तेरे ख़यालों की सुबह हो जाती है
तू वैसी ही है
तू वैसी ही है जैसा मैं चाहता हूँ… बस.. मुझे वैसा बना दे जैसा तू चाहती है…