एक रोज तय है

एक रोज तय है खुद तब्दील ‘राख’ में होना… उम्रभर फिर क्यों औरों से, आदमी जलता है…!

जिस घर में

जिस घर में प्रेम होता हैं उस घर में सफलता और धन चलकर आते है अपना ग्रुप भी एक घर हैं, प्रेम बनाये रखे|

आँखों में आँसू है

आँखों में आँसू है फिर भी दर्द सोया है, देखने वाले क्या जाने की हँसाने वाला कितना रोया है !!

सोचा कि बढ़ चलें

सोचा कि बढ़ चलें अब दिल को संभाल के… लो, फिर से रो गये वो कलेजा निकाल के…

तुम से हमारा

तुम से हमारा वास्ता इतना ही रह गया है क्या… . हम ने सलाम कर लिया, तुम ने जवाब दे दिया…!!!

ना कर सपने मेरे पूरे

ना कर सपने मेरे पूरे , बस इतना काम करदे तू …. जो मेरे दिल में रहता है , मेरे नाम करदे तू ….!!!

फरेबी भी हूँ

फरेबी भी हूँ,ज़िद्दी भी हूँ और पत्थर दिल भी हूँ… मासूमियत खो दी है मैंने वफ़ा करते करते…

दुआ कोन सी

दुआ कोन सी थी हमें याद नहीं, बस इतना याद है दो हथेलियाँ जुड़ी थी एक तेरी थी एक मेरी थी..

न तेरी अदा

न तेरी अदा समझ में आती है ना आदत ऐ ज़िन्दगी, तू हर रोज़ नयी सी,हम हर-रोज़ वही उलझे से..

क्या खबर तुमने

क्या खबर तुमने कहाँ किस रूप में देखा मुझे, मै कहीं पत्थर,कहीं मिट्टी और कहीं आईना था..

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