अपने हाथों की हथेली

अपने हाथों की हथेली पर उसका नाम तो लिख दिया… पर ये सोच कर बहुत रोया के तकदीर तो खुदा लिखता है..

ख्वाहिशें तो मेरी

ख्वाहिशें तो मेरी छोटी छोटी ही थी पुरी ना हुई तो बड़ी लगने लगी..

मैं तेरी ही ग़ज़ल

मैं तेरी ही ग़ज़ल का कोई शेर हूँ ए-ज़िंदगी तू मुझे फिर से गुनगुनाने की कोशिश तो कर…..

सुब्ह सवेरे कौन सी

सुब्ह सवेरे कौन सी सूरत फुलवारी में आई है डाली डाली झूम उठी है कली कली लहराई है ।

मुल्क़ ने माँगी थी

मुल्क़ ने माँगी थी उजाले की एक किरन.. निज़ाम ने हुक़्म दिया चलो आग लगा दी जाय..!!

खामोश रहने दो

खामोश रहने दो लफ़्ज़ों को, आँखों को बयाँ करने दो हकीकत, अश्क जब निकलेंगे झील के, मुक़द्दर से जल जायेंगे अफसाने..

मैं मुसाफ़िर हूँ

मैं मुसाफ़िर हूँ ख़तायें भी हुई होंगी मुझसे, तुम तराज़ू में मग़र मेरे पाँव के छाले रखना..

वो जब अपने हाथो की

वो जब अपने हाथो की लकीरों में मेरा नाम ढूंढ कर थक गये, सर झुकाकर बोले, लकीरें झूठ बोलती है तुम सिर्फ मेरे हो..

कल बड़ा शोर था

कल बड़ा शोर था मयखाने में, बहस छिड़ी थी जाम कौन सा बेहतरीन है, हमने तेरे होठों का ज़िक्र किया, और बहस खतम हुयी..

अजब ये मुल्क़ है

अजब ये मुल्क़ है ऐसा हम जहाँ पे रहते हैं, इश्क़ छुपके यहाँ, नफ़रत खुलेआम होती है…!!

Exit mobile version