अपने वजूद पर इतना न इतरा ए ज़िन्दगी.. वो तो मौत है जो तुझे मोहलत देती जा रही है!!
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शायद कुछ दिन
शायद कुछ दिन और लगेंगे, ज़ख़्मे-दिल के भरने में, जो अक्सर याद आते थे वो कभी-कभी याद आते हैं।
तुम्हारी याद की
तुम्हारी याद की शिद्दत में बहने वाला अश्क ज़मीं में बो दिया जाए तो आँख उग आए..!!
क्या क्या रंग
क्या क्या रंग दिखाती है जिंदगी क्या खूब इक्तेफ़ाक होता है, प्यार में ऊम्र नहीँ होती पर हर ऊम्र में प्यार होता है..!!
यू तो अल्फाज नही हैं
यू तो अल्फाज नही हैं आज मेरे पास मेहफिल में सुनाने को, खैर कोई बात नही, जख्मों को ही कुरेद देता हूँ।
आंसू निकल पडे
आंसू निकल पडे ख्वाब मे उसको दूर जाते देखकर..!! आँख खुली तो एहसास हुआ इश्क सोते हुए भी रुलाता है..!!
रुकी-रुकी सी लग रही है
रुकी-रुकी सी लग रही है नब्ज-ए-हयात, ये कौन उठ के गया है मेरे सिरहाने से।
मुमकिन नहीं है
मुमकिन नहीं है हर रोज मोहब्बत के नए किस्से लिखना, मेरे दोस्तों अब मेरे बिना अपनी महफ़िल सजाना सीख लो।
हम ने भी कह दिया
हम ने भी कह दिया उनसे की बहुत हो गयी जंग बस.. बस ए मोहब्बत तुझे फ़तेह मुबारक मेरी शिक्स्त हुई।
तुमसे ऐसा भी
तुमसे ऐसा भी क्या रिश्ता हे? दर्द कोई भी हो.. याद तेरी ही आती हे।