सोच में सारे परिन्दे सब के सब ख़ामोश हैं ! एक परिन्दा शाख़ पर जब शाम तक लौटा नहीं !!
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चलो अब शाम हुई
चलो अब शाम हुई हम घर को चलते हैं, पंछियों का देर तक आवारा घूमना अच्छा नहीं होता…
आज ज़ाम मैंने
आज ज़ाम मैंने शौक से उडेल दी बेसिन में, कसूर ये था कि एक अश्क गिरा था उसमें, डर ये था कि कहीं ज़हर ना पी जाऊँ…
हमको नागवार सी लगी
एक यह बात हमको नागवार सी लगी, वो दिल का किराएदार कभी मालिक नहीं बना…
मैख़ाने की बात
मैख़ाने की बात उठी और शाकी को छोड दें, ये क्या बात करते हो साहिब,कुछ तो ईमान रखो…
अब तो मुझ को
अब तो मुझ को मेरे हाल में जीने दो अब तो मैंने तुम पे मरना छोड़ दिया|
अग़र फितरत हमारी
अग़र फितरत हमारी सहने की नहीं होती…. तो हिम्मत तुम्हारी कुछ कहने की नहीं होती….
बात ऊँची थी
बात ऊँची थी मगर बात ज़रा कम आँकी उस ने जज़्बात की औक़ात ज़रा कम आँकी वो फरिश्ता मुझे कह कर ज़लील करता रहा मैं हूँ इन्सान, मेरी ज़ात ज़रा कम आँकी
नज़र उसकी चुभती है
नज़र उसकी चुभती है दिल में कटार की तरह तड़प कर रह जाता हूँ मैं किसी लाचार की तरह उसकी मुलाकात दिल को बड़ा सुकून देती है उससे मिल कर दिन गुज़रता है त्योहार की तरह|
न जन्म कुछ न मृत्यु
न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ ,बस इतनी सी बात है… किसी की आंख खुल गई ,किसी को निंद आ गई |