बस यही सोच कर

बस यही सोच कर हर मुश्किलों से लड़ता आया हूँ…! धूप कितनी भी तेज़ हो समन्दर नहीं सूखा करते…।।

एक मुद्दत से

एक मुद्दत से तुम निगाहों में समाए हो…! एक मुद्दत से हम होंश में नहीं हैं ..!!

घाव खुद कि

कभी कभी कुछ घाव खुद कि खरोंचों के होते है..

पहाड़ों के क़दों

पहाड़ों के क़दों की खाइयाँ हैं बुलन्दी पर बहुत नीचाइयाँ हैं है ऐसी तेज़ रफ़्तारी का आलम कि लोग अपनी ही ख़ुद परछाइयाँ हैं गले मिलिए तो कट जाती हैं जेबें बड़ी उथली यहाँ गहराइयाँ हैं हवा बिजली के पंखे बाँटते हैं मुलाज़िम झूठ की सच्चाइयाँ हैं बिके पानी समन्दर के किनारे हक़ीक़त पर्वतों की… Continue reading पहाड़ों के क़दों

कागज़ पर उतारे

कागज़ पर उतारे कुछ लफ्ज़, ना खामखा थे.. ना फ़िज़ूल थे.. ये वो जज़्बात थे.. लब जिन्हें कह ना पाएं थे कभी…!!

दिल ज़िद्दी सा

ख्वाहिश भले छोटी सी हो लेकिन… उसे पूरा करने के लिए दिल ज़िद्दी सा होना चाहिए..

मुड़कर नहीं देखता

मुड़कर नहीं देखता अलविदा के बाद , कई मुलाकातें बस इसी गुरुर ने खो दी।

रात किस्तों में

रात किस्तों में कट रही है, चाहत जिन्दगी से पेंशन लेने की है

आसमां तेरा मेरा

आसमां तेरा मेरा हुआ सांस की तरहां रुआ रुआ

माना की आज

माना की आज इतना वजुद नही हे मेरा पर… बस उस दिन कोई पहचान मत निकाल लेना जब मे कुछ बन जाऊ…

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