वफ़ाओं के तकाज़े तुमसे

कौन करता है वफ़ाओं के तकाज़े तुमसे……? हम तो एक झूठी तसल्ली के तलबगार थे बस….!!

तमाम रात सहर की

तमाम रात सहर की दुआएँ माँगी थीं खुली जो आँख तो सूरज हमारे सर पर था|

ग़म-ए-दुनिया

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें |

भटकता फिर रहा है

भटकता फिर रहा है दिल किनारों की तमन्ना में तुम्हारे इश्क़ में डूबे तो बेड़ा पार हो जाये

सलीका तुमने परदे का

सलीका तुमने परदे का बड़ा अनमोल रख्खा है.. यही निगाहें कातिल हैं इन्ही को खोल रख्खा है..

मैं तुम्हारे हिस्से

मैं तुम्हारे हिस्से की बेवफाई करूँगा… तुम मेरे हिस्से की शायरी करना…।।

वो दिल ही क्या

वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे मैं तुझ को भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे|

खेल जब दोबारा शुरु होगा

खेल जब दोबारा शुरु होगा तो मोहरे हम वही से उठाएगें जहॉ इस वकत थरे है!

तेरे लबों का हुक्म

यूँ तेरा नाम दुनिया पूछती रहती है मुझ से पर …. लबों पर आज भी तेरे लबों का हुक्म बैठा है…!

फ़क़त बातें अंधेरों की

फ़क़त बातें अंधेरों की , महज़ किस्से उजालों के.. चिराग़-ए-आरज़ू ले कर , ना तुम निकले ना हम निकले..

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