कितनी दिलकश है उसकी ख़ामोशी सारी बातें फ़िज़ूल हों जैसे…
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धुंध पड़ने लगी….
चलो अच्छा हुआ कि धुंध पड़ने लगी…. दूर तक तकती थीं निगाहें उनको…
सिर गिरे सजदे में
सिर गिरे सजदे में, दिल में दग़ा-बाज़ी हो.. ऐसे सजदों से भला, कैसे खुदा राज़ी हो!!!
वो बहुत देर तक
वो बहुत देर तक सोचता रहा…उसे शायद… सच बोलना था… !!!
वो है जान
वो है जान अब हर एक महफ़िल की हम भी अब घर से कम निकलते हैं..
वह समझते मेरी उल्फत
वह समझते मेरी उल्फत, ये नसीब नहीं थे मेरे मेरी चाहतें तरसती रही, मेरे उजले नसीब को|
जिसको चाहा हमने
जिसको चाहा हमने वो माना ख़ास था हमने इबादत क्या करी वो तो खुदा बन बैठा|
घर न जाऊं किसी के
घर न जाऊं किसी के तो रूठ जातें हैं बड़े बुजुर्ग गावों में….. गांव की मिटटी में अब भी वो तहज़ीब बाकी है.
पता है जिसको
पता है जिसको मुस्तकबिल हमारा वो अपने आज से अनजान क्यूँ है|
डराकर दुनिया को
डराकर दुनिया को वो जीता है, जिसकी हड्डियों में पानी होता है !!