काफ़िर है तो शमशीर पे

काफ़िर है तो शमशीर पे करता है भरोसा, मोमिन है तो बे-तेग़ भी लड़ता है सिपाही…

उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर

उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे, हम कि मजबूर-ए-वफ़ा थे आहटें सुनते रहे…

बेचैनी खरीदते हैं

बेचैनी खरीदते हैं,बेचकर सुकून, है इस तरह का आजकल जीने का जुनून।

तमाम उम्र तेरा

तमाम उम्र तेरा इंतिज़ार कर लेंगे मगर ये रंज रहेगा कि ज़िंदगी कम है|

लाख हुस्न-ए-यकीं

लाख हुस्न-ए-यकीं से बढकर है।। इन निगाहों की बदगुमानी भी।।

आया न एक बार भी

आया न एक बार भी अयादत को वह मसीह, सौ बार मैं फरेब से बीमार हो चुका।

आज शाम महफिल सजी थी

आज शाम महफिल सजी थी बददुआ देने की…. मेरी बारी आयी तो मैने भी कह दिया… “उसे भी इश्क हो” “उसे भी इश्क हो”

सवाल ज़हर का

सवाल ज़हर का नहीं था वो तो हम पी गए तकलीफ लोगो को बहुत हुई की फिर भी हम कैसे जी गए|

उल्टी हो गईं

उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया|

बहुत देर करदी

बहुत देर करदी तुमने मेरी धडकनें महसूस करने में..!​ . ​वो दिल नीलाम हो गया, जिस पर कभी हकुमत तुम्हारी थी..!​

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