छत टपकती है

छत टपकती है उसके कच्चे घर की, वो किसान फिर भी बारिश की दुआ करता है

ख़्वाहिशों का काफिला

ख़्वाहिशों का काफिला भी अजीब ही है , अक्सर वहीँ से गुज़रता है जहाँ रास्ता न हो .

वोह कबसे तलवार लिये

वोह कबसे तलवार लिये मेरे पीछे भाग रही है… मैने तो मजाक मै कहा था की… दिल चीर के दैख… तेरा ही नाम होगा..

हम तो फना हो गए

हम तो फना हो गए उनकी आँखे देखकर ग़ालिब ना जाने वो आइना कैसे देखती होंगी !

तड़प के देखो

तड़प के देखो किसी की चाहत में; तो पता चले कि इंतज़ार क्या होता है; यूँ ही मिल जाये अगर कोई बिना तड़पे; तो कैसे पता चले के प्यार क्या होता है|

ला तेरे पेरों पर

ला तेरे पेरों पर मरहम लगा दूं… कुछ चोट तो तुझे भी आई होगी मेरे दिल को ठोकर मार कर..

ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा

ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है, शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं….!!

लिखते रहे हैं

लिखते रहे हैं तुम्हे रोज ही मगर ख्वाहिशों के ख़त कभी भेजे ही नही!

उसी का शहर

उसी का शहर, वही खुदा और वहीं के गवाह… मुझे यकीन था, कुसूर मेरा ही निकलेगा |

फिर छोटी सी

फिर छोटी सी मुलाकात हो गई, दिल जितना खुश हो उतनी बात हो गई।।

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