कुछ तहखानों में चाह कर भी अँधेरा भरा नहीं जा सकता… यकीन न आये तो चले आओ मुझमें… मेरे शब्दों का पीछा करते हुए … मध्यम आंच में चाँद सुलगा रखा है…
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कमाल की मोहब्बत
कमाल की मोहब्बत थी उसको हम से ……. अचानक ही शुरू हुई और बिन बतायें ही ख़त्म|
हर एक दर्द को
हर एक दर्द को आंसू नहीं मिलते गमो का भी मुक़्क़दर होता है साहेब|
अनपढ़ बन्दा हूँ
अनपढ़ बन्दा हूँ मोहतरमा, तेरे सिवा कुछ आता ही नही…..!!
ख़त्म हुआ न समझ
तू मझे ख़त्म हुआ न समझ, वो तीली भी आधी ही ज़ली थी जिसने जंगल ज़लाया था !
उङती हुयी धुल
उङती हुयी धुल सी तुम्हारी यादें ले आती है पानी आँखो में |
तेरी हसरतें भी ….
तेरी हसरतें भी ……. आ बसीं आखिर, मेरी ख्वाहिशों की ……. यतीम कहानी में
पत्थर के सनम
शायरी भी एक
शायरी भी एक मीठा जुल्म है,,, करते रहो या फिर पढ़ते रहो…
पत्थर न बना दे
पत्थर न बना दे मुझे मौसम की ये सख़्ती,,,, मर जाएँ मेंरे ख़्वाब न ताबीर के डर से….!!.