जिस को भी देखा उसे मुखलिस ही पाया बहुत फरेब दिया है मेरी निगाह ने मुझे|
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किसी को घर से
किसी को घर से निकलते ही मिल गयी मंज़िल, कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा । कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िन्दगी जैसे, तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा ।
नाम बदनाम होने की
नाम बदनाम होने की चिंता छोड़ दी मैंने… अब जब गुनाह होगा, तो मशहुर भी तो होगे…!
कुछ पेचीदा लफ्जों में
कुछ पेचीदा लफ्जों में मैंने अपनी बात रखी, जमाना हँसता गया, जज्बात रोते गये…!
यूं न झाकों मेरी रुह में..
यूं न झाकों मेरी रुह में…….. कुछ ख्वाहिशें मेरी वहाँ बेनकाब रहती हैं ।
मैं वक़्त की दहलीज़ पे
मैं वक़्त की दहलीज़ पे ठहरा हुआ पल हूँ, क़ायम है मेरी शान कि मैं ताजमहल हूँ !
ज़िंदगी अमल के
ज़िंदगी अमल के लिए भी नसीब हो , ये ज़िंदगी तो नेक इरादों में कट गई |
मैंने माँगी थी
मैंने माँगी थी उजाले की फ़क़त इक किरन तुम से ये किसने कहा आग लगा दी जाए |
तू है मेरे अंदर
तू है मेरे अंदर मुझे संभाले हुए …. के बे-करार सा रह कर भी बर-करार हूँ में ….
ना करवटें थी
ना करवटें थी और ना बैचेनीयाँ थी, क्या गजब की नींद थी मोहब्बत से पहले|