हादसोँ के गवाह हम भी हैँ

हादसोँ के गवाह हम भी हैँ, अपने दिल से तबाह हम भी हैँ, जुर्म के बिना सजा ए मौत मिली, ऐसे ही एक बेगुनाह हम भी हैँ..

कभी तो अपने लहजे से

कभी तो अपने लहजे से ये साबित कर दो…. के मुहोब्बत तुम भी हम से लाजबाब करती हो….

गाँव से निकला था

गाँव से निकला था तो माँ ने पर्स में मुस्कानें रखी थी, इस शहर ने जेब काट ली

हम वहाँ हैं

हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी कुछ हमारी ख़बर नहीं आती

गुमराह कब किया है

गुमराह कब किया है किसी राह ने मुझे चलने लगा हूँ आप ही अपने ख़िलाफ़ में|

वफ़ाई और बेवफाई

वफ़ाई और बेवफाई, क्रमशः नदियां और समंदर है… कितनी भी नदियां मिल जाए, समंदर खारा ही रहता है…

आस तो बहुत जगाती है

ओस आस तो बहुत जगाती है .. मगर प्यास किसकी बुझाती है …

तेरे वादे तु ही जाने

तेरे वादे तु ही जाने. मेरा तो आज भी वही कहना है , *जिस दिन साँस टूटेगी उस दिन ही तेरी आस छूटेगी|

देखा है क़यामत को

देखा है क़यामत को,मैंने जमीं पे नज़रें भी हैं हमीं पे,परदा भी हमीं से|

बिछड़कर फिर मिलेंगे

बिछड़कर फिर मिलेंगे यकीन कितना था, बेशक ख्वाब ही था मगर हसीन कितना था…

Exit mobile version