आज लफ्जों को

आज लफ्जों को मय पीने बुलाया है, बात बन गयी तो जरूर गजल होगी ।

पढ़ते क्या हो

पढ़ते क्या हो आंखों में मेरी कहानी…. मस्ती में मगन रहना तो आदत है मेरी पुरानी…

बहुत से कर्ज हैं

बहुत से कर्ज हैं चुकाने ऐ उम्र जरा ठहर जा। बात मान ले मेरी अब तो तू घर जा।

मैं क्यों कहूँ

मैं क्यों कहूँ उससे की मुझसे बात करो..! . क्या उसे नहीं मालूम की उसके बिना मेरा दिल नहीं लगता ….!!!!

सोचता हूं जिन्दा हूं

सोचता हूं जिन्दा हूं, मांग लूं सब से माफी, ना जाने मारने के बाद, कोई माफ करे या न करे|

अपने अहसासों को

अपने अहसासों को ख़ुद कुचला है मैंने, क्योंकि बात तेरी हिफाज़त की थी.!

तुम्हारे जाने के बाद

तुम्हारे जाने के बाद सुकून से सो नहीं पाया कभी. मेरी करवटों में रेगिस्तान सा खालीपन पसरा रहता है जब तुम पास होते हो तो कोई शिकायत नहीं होती किसी से भी.

यूं देखिए तो

यूं देखिए तो आंधी में बस इक शजर गया लेकिन न जाने कितने परिंदों का घर गया. जैसे ग़लत पते पे चला आए कोई शख़्स सुख…ऐसे मेरे दर पे रुका…और गुज़र गया….!!!

यकीं नहीं है

यकीं नहीं है मगर आज भी ये लगता है मेरी तलाश में शायद बहार आज भी है … ??

कुछ नहीं है

कुछ नहीं है ख़ास इन दिनों – तुम जो नहीं हो पास इन दिनों..

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