यूं कम ना आंकिये

लफ़्ज़ों को यूं कम ना आंकिये, चंद जो इक्कठे हो जाएँ तो शेर हो जाते हैं।

उम्र ढ़लते देर कहाँ लगती है..

उम्र ढ़लते देर कहाँ लगती है.., साल भी देखो चार दिन पुराना हो गया !

शाम का वक्त

शाम का वक्त हो और ‘शराब’ ना हो…! इंसान का वक्त इतना भी ‘खराब’ ना हो…!!

आँगन आँगन ज़हर

आँगन आँगन ज़हर बरसाएगी उस की चाँदनी…!!! ☝वो अगर महताब की सूरत उजागर हो गयी….!!!

तुमसे किसने कह दिया

तुमसे किसने कह दिया कि मुहब्बत की बाजी हार गए हम? अभी तो दाँव मे चलने के लिए मेरी जान बाकी है !

हम कब के मर चुके

,हम कब के मर चुके थे जुदाई में ऐ अजल….जीना पड़ा कुछ और तेरे इन्तिजार में….

कभी कभी धागे

कभी कभी धागे बड़े कमज़ोर चुन लेते है हम ! और फिर पूरी उम्र गाँठ बाँधने में ही निकल जाती है ….!!!

अब मौत से

अब मौत से कह दो कि नाराज़गी खत्म कर ले, वो बदल गयी है जिसके लिए हम ज़िंदा थे​।

मैं ख़ामोशी तेरे मन की

मैं ख़ामोशी तेरे मन की तू अनकहा अलफ़ाज़ मेरा..! मैं एक उलझा लम्हा तू रूठा हुआ हालात मेरा..!!

हक़ हूँ में

हक़ हूँ में तेरा हक़ जताया कर, यूँ खफा होकर ना सताया कर..

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