चल ना यार हम फिर से

चल ना यार हम फिर से मिट्टी से खेलते हैं हमारी उम्र क्या थी जो मोहब्बत से खेल बैठे|

अब‬ हमारा जिक्र भी

अब‬ हमारा जिक्र भी तो होना ‪‎चाहिए‬ हीर-रांझा‬ की कहानी आखिर कब तक|

कुछ इस कदर बीता है

कुछ इस कदर बीता है मेरे बचपन का सफर दोस्तों मैने किताबे भी खरीदी तो अपने खिलौने बेचकर

इक मुद्दत से

इक मुद्दत से कोई तमाशा नहीं देखा बस्ती ने कल बस्ती वालों ने मिल-जुलकर मेरा घर फूंक दिया

नशे में चूर होगी

नशे में चूर होगी तू किसी ग़ैर की बांहों में, दबाकर लकड़ियों में जब मुझे दुनिया जलायेगी

इस दौर ए तरक्की में…

इस दौर ए तरक्की में…जिक्र ए मुहब्बत. यकीनन आप पागल हैं…संभालिये खुद को

हँसते हुए चेहरों को

हँसते हुए चेहरों को ग़मों से आजाद ना समझो, मुस्कुराहट की पनाहों में हजारों दर्द होते हैं!

देखेंगे अब जिंदगी

देखेंगे अब जिंदगी चित होगी या पट, हम किस्मत का सिक्का उछाल बैठे हैं।

तंग सी आ गयी है

तंग सी आ गयी है सादगी मेरी मुझसे ही के हमें भी ले डूबे कोई अपनी अवारगी में..!!

इस शहर में

इस शहर में मज़दूर जैसा दर-बदर कोई नहीं.. जिसने सबके घर बनाये उसका घर कोई नहीं..

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