तुम फिर आ गये

तुम फिर आ गये मेरी शायरी में…क्या करूँ… न मुझसे शायरी दूर जाती है न मेरी शायरी से तुम..

दो दीवारें एक जगह

दो दीवारें एक जगह पर मिलती थी कहने को वो कोना, ख़ाली कोना था…

हारने वाले के आगे

हारने वाले के आगे हाथ जोड़कर दिल जीतता हुँ महोब्बत के अखाड़े का सुल्तान मैं भी हूँ ।

मैं कीमती बहुत हूँ

मैं कीमती बहुत हूँ, तुम मुझे खो कर तो देखो|

इज़ाज़त हो तो

इज़ाज़त हो तो लिफाफे में रख कर, कुछ वक़्त भेज दूं…… सुना है कुछ लोगों को फुर्सत नहीं है, अपनों को याद करने की!

कब आ रहे हो

कब आ रहे हो मुलाकात के लिये. हमने चाँद रोका है एक रात के लिय|

मेरे शहर मे

मेरे शहर मे खुदाओं की कमी नही दिक्कत तो मुझे आज भी इन्सान ढूंढने मे आती है..!!

अपनी बाँहों में

अपनी बाँहों में ले के सोता हूँ, मैंने तकिये का नाम ‘तुम’ रखा है..

हमें मालूम है

हमें मालूम है हम से सुनो महशर में क्या होगासब उस को देखते होंगे वो हम को देखता होगा।।

तू है…यादें हैं…

तू है…यादें हैं…और ग़म भी हैं….. इन सब में…..थोड़े से…हम भी हैं…

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