सिर गिरे सजदे में

सिर गिरे सजदे में, दिल में दग़ा-बाज़ी हो.. ऐसे सजदों से भला, कैसे खुदा राज़ी हो!!!

वो बहुत देर तक

वो बहुत देर तक सोचता रहा…उसे शायद… सच बोलना था… !!!

बेशक तुम्हारे बिना

बेशक तुम्हारे बिना जिंदगी काट सकते हैं, लेकिन “जिंदगी जी नहीँ सकते !

सुकून देने के लिए बनते हैं..

कुछ रिश्ते सुकून देने के लिए बनते हैं.. कलम से भी हमारा कुछ ऐसा हीं रिश्ता है!!

वो है जान

वो है जान अब हर एक महफ़िल की हम भी अब घर से कम निकलते हैं..

वह समझते मेरी उल्फत

वह समझते मेरी उल्फत, ये नसीब नहीं थे मेरे मेरी चाहतें तरसती रही, मेरे उजले नसीब को|

घर न जाऊं किसी के

घर न जाऊं किसी के तो रूठ जातें हैं बड़े बुजुर्ग गावों में….. गांव की मिटटी में अब भी वो तहज़ीब बाकी है.

एक आईना और एक

एक आईना और एक मैं, इस दुनिया में तेरे दिवाने दो !!

क्या लाजवाब था

क्या लाजवाब था तेरा छोड़ के जाना, भरी भरी आँखों से मुस्कुराये थे हम|

पुराने लोग नया हौसला

पुराने लोग नया हौसला तो क्या देंगे मगर बुज़र्गों से मिलते रहो दुआ देंगे..

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