अब तो अपनी परछाईं

अब तो अपनी परछाईं भी ये कहने लगी है , मैं तेरा साथ दूँगी सिर्फ उजालों में !!

अधूरेपन का मसला

अधूरेपन का मसला ज़िंदगी भर हल नहीं होता… कहीं आँखें नहीं होतीं, कहीं काजल नहीं होता…

वो दास्तान मुकम्मल करे

वो दास्तान मुकम्मल करे तो अच्छा है मुझे मिला है ज़रा सा सिरा कहानी का..

बुझा सका है

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले….. ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता…!!

इस शहर के

इस शहर के अंदाज अजब देखे है यारों ! गुंगो से कहा जाता है, बहरों को पुकारो !!

रोज सोचता हूँ

रोज सोचता हूँ तुझे भूल जाऊ, रोज यही बात…. भूल जाता हूँ

कोई पटवारी वाकिफ़ है

कोई पटवारी वाकिफ़ है क्या तुम्हारा, अपनी ज़िन्दगी तुम्हारे नाम करवानी थी

ठहर जाते तो शायद

ठहर जाते तो शायद मिल जाते हम तुम्हें, इश्क मे इन्तजार किया करते हैं जल्दबाजी नही…

छीनकर हाथों से

छीनकर हाथों से जाम वो इस अंदाज़ से बोली, कमी क्या है इन होठों में जो तुम शराब पीते हो।

भुला देंगे तुम्हे

भुला देंगे तुम्हे भी ज़रा सब्र तो कीजिये, आपकी तरह मतलबी होने में थोडा वक़्त लगेगा

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