एक रोज तय है

एक रोज तय है खुद तब्दील ‘राख’ में होना… उम्रभर फिर क्यों औरों से, आदमी जलता है…!

मेरी इस बेफिक्री का

मेरी इस बेफिक्री का…ना तो लहज़ा है…ना ही ज़ायका जाने क्यों…लोग मुझे ग़ज़ल कहते हैं ?

आँखों में आँसू है

आँखों में आँसू है फिर भी दर्द सोया है, देखने वाले क्या जाने की हँसाने वाला कितना रोया है !!

काँच की सुर्ख़

काँच की सुर्ख़ चूड़ी मेरे हाथ में आज ऐसे खनकने लगी है जैसे कल रात शबनम में लिक्खी हुई तेरे हाथ की शोख़ियों को हवाओं ने सुर दे दिया हो |

खामोश रह के भी

खामोश रह के भी बहुत चुभते है जिंदगी भर , क्यू , की दर्द देने वाला हर जख्म शोर नहीं मचाता

ना कर सपने मेरे पूरे

ना कर सपने मेरे पूरे , बस इतना काम करदे तू …. जो मेरे दिल में रहता है , मेरे नाम करदे तू ….!!!

दुआ कोन सी

दुआ कोन सी थी हमें याद नहीं, बस इतना याद है दो हथेलियाँ जुड़ी थी एक तेरी थी एक मेरी थी..

क्या खबर तुमने

क्या खबर तुमने कहाँ किस रूप में देखा मुझे, मै कहीं पत्थर,कहीं मिट्टी और कहीं आईना था..

महफ़िल में हँसना

महफ़िल में हँसना हमारा मिजाज बन गया, तन्हाई में रोना एक राज बन गया, दिल के दर्द को चेहरे से जाहिर न होने दिया, बस यही जिंदगी जीने का अंदाज बन गया।

कभी सोचता हूँ

कभी सोचता हूँ की सारे हिसाब चुकता कर आउ, लेकिन फिर ख्याल आता है कि आसुओ की कीमत लाख गुना अधिक होती है..

Exit mobile version