मैंने कब उससे

मैंने कब उससे रिआयत की गुज़ारिश की थी वो हर इक बात पे एहसान जताता क्यूँ है !

मेरे गुनाहों की सज़ा

मेरे गुनाहों की सज़ा तुझे मिली है आज माना अब तो ताउम्र मुझे, अपनी सज़ा का इंतज़ार होगा ।।

बर्फ़ डूब कर

बर्फ़ डूब कर मर गयी शराब में, होंठ लाश तलाश रहे हैं …..

क़ुर्बानी देनी ही है

क़ुर्बानी देनी ही है तो अपने ऐबों की दो.. इन मासूम जानवरों को मार कर जन्नत नसीब नहीं होगी..

इश्क़ मरता कहाँ है

इश्क़ मरता कहाँ है यारों…. ये तो दो टुकड़ों में जिया करता है….!!

ख़ैर आदी है हम

मुझे लहज़े खफ़ा करते हैं तुम्हारे, लफ़्जों के तो ख़ैर आदी है हम….

लोग आँसुओं से

लोग आँसुओं से भी पढ़ न ले उनका नाम , . बस इसी कशमकश में हमने रोना छोड़ दिया..!!

अब अख़रने लगी थी

नज़दीकियाँ अब अख़रने लगी थी उन्हें… कुछ यूँ भी मैंने फ़ासलों से दोस्ती कर ली.

आदत पड गयी है

आदत पड गयी है सभी को , प्यार अब हर किसी को कहां होता है ?

अगर कसमें सच्ची होती

अगर कसमें सच्ची होती, तो सबसे पहले खुदा मरता|

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