कभी मैं अपने हाथों की

कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा मुझे मालूम है क़िस्मत का लिक्खा भी बदलता है

गली से गुज़रने का

गली से गुज़रने का एक वक़्त मुक़र्रर कर लो, दीवार से खड़े खड़े मेरे पैर दुखने लगते है!!

तुम तो शरारत पे

तुम तो शरारत पे उतर आए, ये कैसी चाहत पे उतर आए……., दिल क्या दिया तुम्हें अपना, तुम तो हुकूमत पे उतर आए…..

तुम अकेले क्या इश्क़ करोगे

तुम अकेले क्या इश्क़ करोगे आओ आधा-आधा कर लेते है|

इन कागज़ के टुकड़ों से

इन कागज़ के टुकड़ों से नहीं छुपती हकीकत उनकी, चेहरे की चमक बयां करती है उनकी रूह की तासीर क्या है…।।

कुछ उनकी मजबूरियाँ..

कुछ उनकी मजबूरियाँ.. कुछ मेरी कश्मकश.. . . बस यूँ ही एक ख़ूबसूरत कहानी को.. खत्म कर दिया हमने…

सितारे भी जाग रहे हो

सितारे भी जाग रहे हो रात भी सोई ना हो….. ऐ चाँद मुझे वहाँ ले चल…. जहाँ उसके सिवा कोई ना हो….

बाहें फैलाने के बाद

बाहें फैलाने के बाद ख्याल आया, इंतेजार इंतेजार होता है…

साथ रह सकते हैं

साथ रह सकते हैं, मगर एक हो नहीं सकते… कितने मजबूर है हम किनारों की तरह…

हम आह भी करते हैं

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम , वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नही होता …!!!

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