मेरी गली से गुजरा

मेरी गली से गुजरा, घर तक नहीं आया, अच्छा वक्त भी करीबी रिश्तेदार निकला|

अपनी आस्तीनों में

अपनी आस्तीनों में सपेरे बिठा रखें है पीठ पे दुआओं के बख्तर लगा रखे हैं |

तस्वीर बना कर

तस्वीर बना कर उसकी आस्मां पे टांग आया हूँ… और लोग पूछते हैं आज चाँद इतना बेदाग़ कैसे है ।

बदनाम ना कर

शायर कहकर बदनाम ना कर, मैं तो, रोज़ शाम को दिन भर का ‘हिसाब’ लिखता हूँ !

तुम आते हो…

तुम आते हो… चले जाते हो, मैं जुड़ता हूँ… टूट जाता हूँ…

तुम अगर चाहो

तुम अगर चाहो तो पूछ लिया करो खैरियत हमारी.. कुछ हक़ दिए नही जाते ले लिए जाते है…

सूरज ढलते ही

सूरज ढलते ही रख दिये उस ने मेरे होठो पर होठ … ।। दोस्तों इश्क का रोजा था और गजब की इफ्तारी थी … !!

गुलों का छोड़ कर

गुलों का छोड़ कर दामन ये क्यूँ बैठी है काँटों पे, ये तितली तो बहुत ही दिलजली मालूम होती है…

मत पूछ मेरे

मत पूछ मेरे महबूब की सादगी का अन्दाज़ , नज़रें भी हमीं पर हैं, पर्दा भी हमीं से है ।।

इस अजनबी दुनिया में

इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं, सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं, आँख से देखोगे तो खुश पाओगे, दिल से पूछोगे तो दर्द की सैलाब हूँ मैं…….

Exit mobile version