बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले….. ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता…!!
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इस शहर के
इस शहर के अंदाज अजब देखे है यारों ! गुंगो से कहा जाता है, बहरों को पुकारो !!
कोई पटवारी वाकिफ़ है
कोई पटवारी वाकिफ़ है क्या तुम्हारा, अपनी ज़िन्दगी तुम्हारे नाम करवानी थी
ठहर जाते तो शायद
ठहर जाते तो शायद मिल जाते हम तुम्हें, इश्क मे इन्तजार किया करते हैं जल्दबाजी नही…
छीनकर हाथों से
छीनकर हाथों से जाम वो इस अंदाज़ से बोली, कमी क्या है इन होठों में जो तुम शराब पीते हो।
भुला देंगे तुम्हे
भुला देंगे तुम्हे भी ज़रा सब्र तो कीजिये, आपकी तरह मतलबी होने में थोडा वक़्त लगेगा
इश्क़ के आगोश में
इश्क़ के आगोश में आने वालों सुनो, नींद नहीं आती बिना महबूब की बाहों के..
हो सकता है
हो सकता है की मैं तेरी खुशियाँ बाँटने ना आ सकू, गम आये तो खबर कर देना वादा है की सारे ले जाऊँगा…
मुझे मालूम है
मुझे मालूम है उड़ती पतंगों की रवायत.. गले मिलकर गला काटूँ मैं वो मांझा नहीं..
नहीं ज़रूरत मुझे
नहीं ज़रूरत मुझे तुम्हारी अब, ख्यालात तुम्हारे काफ़ी है….. तुम क्या जानो इस मस्ती को, अहसास तुम्हारे काफ़ी है……