कहाँ सब को आता है

मौत तो सब को आती है, जीना कहाँ सब को आता है ?

लम्हा सा बना दे

लम्हा सा बना दे मुझे.. रहूँ गुज़र के भी साथ तेरे…..!!

बस वो मुस्कुराहट

बस वो मुस्कुराहट ही कहीं खो गई है, बाकी तो मैं बहुत खुश हूँ आजकल…

अब गिला क्या करना ..

अब गिला क्या करना ..उनकी बेरुखी का .. दिल ही तो था भर गया होगा …

वों आजाद जुल्फें

वों आजाद जुल्फें छू रहीं उनके लबों को… और हम खफा हो बैठे हवाओं से..

मेरी मुलाक़ात तुझसे

मेरी मुलाक़ात तुझसे अब तक अधूरी है, तू पास ही है मेरे, फिर क्यों ये दूरी है….

शीशा रहे बगल में

शीशा रहे बगल में, जामे शराब लब पर, साकी यही जाम है, दो दिन की जिंदगानी का…

अब तो अपनी परछाईं

अब तो अपनी परछाईं भी ये कहने लगी है , मैं तेरा साथ दूँगी सिर्फ उजालों में !!

अधूरेपन का मसला

अधूरेपन का मसला ज़िंदगी भर हल नहीं होता… कहीं आँखें नहीं होतीं, कहीं काजल नहीं होता…

वो दास्तान मुकम्मल करे

वो दास्तान मुकम्मल करे तो अच्छा है मुझे मिला है ज़रा सा सिरा कहानी का..

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