ये आशकी तुझसे शुरू

ये आशकी तुझसे शुरू तुझपे खत्म ये शायरी तूझसै शुरू तूझपै खत्म तैरै लीए ही सासैं मिली है तेरे लीए ही लीया है जन्म यै जिदंगी तुझसै शूरू तुझपै खत्म |

तुम्हे क्या पता

तुम्हे क्या पता, किस दर्द मे हूँ मैं.. जो लिया नही, उस कर्ज मे हूँ मैं..

ये तो इश्क़ का

ये तो इश्क़ का कोई लोकतंत्र नहीं होता, वरना रिश्वत देके तुझे अपना बना लेते|

इंतज़ार की आरज़ू

इंतज़ार की आरज़ू अब खो गयी है, खामोशियो की आदत हो गयी है, न सीकवा रहा न शिकायत किसी से, अगर है तो एक मोहब्बत, जो इन तन्हाइयों से हो गई है..!

जब भी ग़ैरों की

जब भी ग़ैरों की इनायत देखी हम को अपनों के सितम याद आए|

गुज़र गया दिन

गुज़र गया दिन होली के तमाम रंग लेकर .. ज़िन्दगी की ख़ुशियाँ कल आपको नए रंग बख्शे !!

तू पंख ले ले

तू पंख ले ले और मुझे सिर्फ हौंसला दे दे, फिर आँधियों को मेरा नाम और पता दे दे !!

कई शख्स आये

कई शख्स आये ज़िन्दगी में, पर ज़िन्दगी तुमसे ही थी।

इन मासूम निगाहों को

इन मासूम निगाहों को पहचानती तो होगी न तुम.!! !!.अब इनमे दर्द और अश्कों की वजह सिर्फ तुम हो..

खींचो न कमानों को

खींचो न कमानों को,न तलवार निकालो, ग़र दुश्मन हो मुकाबिल तो अखबार निकालो।

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