सोच में सारे

सोच में सारे परिन्दे सब के सब ख़ामोश हैं ! एक परिन्दा शाख़ पर जब शाम तक लौटा नहीं !!

चलो अब शाम हुई

चलो अब शाम हुई हम घर को चलते हैं, पंछियों का देर तक आवारा घूमना अच्छा नहीं होता…

आज ज़ाम मैंने

आज ज़ाम मैंने शौक से उडेल दी बेसिन में, कसूर ये था कि एक अश्क गिरा था उसमें, डर ये था कि कहीं ज़हर ना पी जाऊँ…

अजीब ईत्तेफाक की

अजीब ईत्तेफाक की हमें इश्क हो गया, जिन्दगी अब सितम जाने और क्या देगी…

हमको नागवार सी लगी

एक यह बात हमको नागवार सी लगी, वो दिल का किराएदार कभी मालिक नहीं बना…

मैख़ाने की बात

मैख़ाने की बात उठी और शाकी को छोड दें, ये क्या बात करते हो साहिब,कुछ तो ईमान रखो…

बेवजह रोने की आदत

सुना था उसे बेवजह रोने की आदत थी, मैं वजह पूछता रहा…वो रोती चली गयी…

आते हैं मैख़ाने में

आते हैं मैख़ाने में तो कलम टूट कर लिखती है, मुझ से बडी काफिर तो मेरी कलम हो रक्खी है…

वो जो समझते थे

वो जो समझते थे हम उनके रहम-ओ-करम पर हैं, कल बात चली तो उनको करमों पर हमें रहम आ गया…

अग़र फितरत हमारी

अग़र फितरत हमारी सहने की नहीं होती…. तो हिम्मत तुम्हारी कुछ कहने की नहीं होती….

Exit mobile version